!!छत्रपति शिवाजी और शाहजी भोंसले!!     (शिवाजी को जानों पखवाड़ा)

शिवाजी भारतीय इतिहास के सबसे पराक्रमी,निडर और साहसी योद्धा माने जाते हैं।  जिन्होंने औरंगजेब जैसे क्रूर शासक को नाकों चने चबवा दिए  और मराठा साम्राज्य स्थापित किया था।

शिवाजी की पिता शाहजी भोंसले थे। जो बचपन से ही उनको रामायण, महाभारत और अन्य वीरता की किस्से सुनाया करते थे। इस सब बातों का उनके जीवन पर बड़ा ही गहरा प्रभाव पड़ा। बाल्यकाल से ही युद्ध लड़ना, तलवार चलाना जैसी परिवार से शिक्षा मिलने के कारण  शिवाजी एक कुशल सैनिक बनें।

मात्र 16 साल की आयु में शिवाजी ने पुणे के तोरण दुर्ग पर आक्रमण किया और विजय प्राप्त की। तभी से उनकी बहादुरी के जयकारे पूरे दक्षिण भारत में गूंजने लगे।

शाहजी की मुक्ति की शर्तों के मुताबिक शिवाजी राजाने बीजापुर के क्षेत्रों पर आक्रमण तो नहीं किया परन्तु दक्षिण-पश्चिम में अपनी शक्ति बढ़ाने का प्रयास किया। इस क्रम में जावली का राज्य बाधा का काम कर रहा था। यह राज्य सातारा के सुदूर उत्तर पश्चिम में वामा और कृष्णा नदी के बीच में स्थित यहाँ का राजा चन्द्रराव मोरे जिसने ये जागीर शिवाजी से प्राप्त की थी। शिवाजी ने मोरे शासक चन्द्रराव को स्वराज में शामिल होने को कहा पर चन्द्रराव बीजापुर के सुल्तान के साथ मिल गया। सन् 1653 में शिवाजी ने अपनी सेना लेकर जावली पर आक्रमण कर दिया। चन्द्रराव मोरे और उसके दोनों पुत्रों ने शिवाजी के साथ युद्ध किया जिस कारण वे बन्दी बना लिए गए पर चन्द्रराव भाग गया। स्थानीय लोगों ने शिवाजी के इस कृत्य का विरोध किया लेकिन वे विद्रोह को कुचलने में सफल रहे।

पश्चिमी महारष्ट्र में स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के बाद शिवाजी ने अपना राज्याभिषेक करना चाहा, परन्तु ब्राह्मणों ने उनका घोर विरोध किया. शिवाजी के निजी सचिव बालाजी आव जी ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और उन्होंने ने काशी में गंगाभ नामक ब्राहमण के पास तीन दूतों को भेजा, किन्तु गंगाभ ने प्रस्ताव ठुकरा दिया क्योकि शिवाजी क्षत्रिय नहीं थे. उसने कहा कि क्षत्रियता का प्रमाण लाओ तभी वह राज्याभिषेक करेगा. बालाजी आव जी ने शिवाजी का सम्बन्ध मेवाड़ के सिसोदिया वंश से समबंद्ध के प्रमाण भेजे जिससे संतुष्ट होकर वह रायगढ़ आया. किन्तु यहाँ आने के बाद जब उसने पुन जाँच पड़ताल की तो उसने प्रमाणों को गलत पाया और राज्याभिषेक से मना कर दिया. अंतत: मजबूर होकर उसे एक लाख रुपये के प्रलोभन दिया गया तब उसने 6 जून, 1674 को राज्याभिषेक किया.राज्याभिषेक के बाद भी पूना के ब्राहमणों ने शिवाजी को राजा मानने से मना कर दिया. विवश होकर शिवाजी को अष्टप्रधान मंडल की स्थापना करनी पड़ी. विभिन्न राज्यों के दूतों, प्रतिनिधियों के अलावा विदेशी व्यापारियों को भी इस समारोह में आमंत्रित किया गया. शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि ग्रहण की. काशी के पण्डित विशेश्वर जी भट्ट को इसमें विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था. पर उनके राज्याभिषेक के 12 दिन बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया. इस कारण से 4 अक्टूबर 1674 को दूसरी बार उनका राज्याभिषेक हुआ. दो बार हुए इस समारोह में लघभग 50 लाख रुपये खर्च हुए.इस समारोह में हिन्दू स्वराज की स्थापना का उद्घोष किया गया था. विजयनगर के पतन के बाद दक्षिण में यह पहला हिन्दू साम्राज्य बना. जहां शिवाजी ने एक स्वतंत्र शासक की तरह अपने नामका सिक्का चलवाया।