!!शिवाजी के अनन्य सहयोगी मालुसरे!!   (शिवाजी को जानों पखवाड़ा)

 तानाजी मालुसरे मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज के घनिष्ठ मित्र और  निष्ठावान मराठा वीर सरदार थे। वे छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ मराठा साम्राज्य और हिन्दू स्वराज के लिए लड़ी जाने वाली सेना के प्रमुख सेनापति थे।तानाजी छत्रपति शिवाजी महाराज के बचपन के मित्र भी थे।

तानाजी मराठा साम्राज्य में एक ऐसे सेनापति थे जिनका आज भी मराठा साम्राज्य के इतिहास में उल्लेख मिलता है। तानाजी के ही सहयोग से शिवाजी ने मुगलों के समय के सबसे मजबूत किले पर विजय हासिल की थी।

अगर तानाजी मालुसरे जी के जीवन के संक्षिप्त परिचय की बात की जाए तो वे एक सच्चे मराठा कोली सरदार थे जिनसे शिवाजी की बचपन की मित्रता और अपने कार्य के प्रति कर्तव्यनिष्ठा के लिए जाना जाता है। मराठा सम्राज्य में तानाजी, शिवाजी की विदेशी गुलामी मुक्त भारत बनाने के सपने में सूबेदार की मुख्य भूमिका में थे।

तानाजी और शिवाजी बचपन से ही एक-दूसरे को बहुत अच्छी तरह से जानते थे। तानाजी,शिवाजी के साथ हर लड़ाई में शामिल हुए। वे शिवाजी के साथ औरंगजेब से मिलने दिल्ली भी गये थे तब औरंगजेब ने शिवाजी और तानाजी को कपट से बंदी बना लिया था। उस समय शिवाजी और तानाजी ने एक योजना बनाई जिसमें वे मिठाई के पिटारे में छिपकर वहाँ से बाहर निकल आते थे।

एक बार शिवाजी महाराज की माताजी जीजाबाई लाल महल से कोंडाना किले की ओर देख रहीं थीं। तो शिवाजी ने माता जीजाबाई से उनकी मन की बात पूछी तो इस पर माता जीजाबाई ने कहा कि इस किले पर लगा हरा झण्डा हमारे मन को उद्विग्न कर रहा है। उसके दूसरे दिन शिवाजी महाराज ने अपने राजसभा में सभी सैनिको को बुलाया और पूछा कि कोंडाना किला जीतने के लिए कौन जायेगा। किसी भी अन्य सरदार और किलेदार को यह कार्य कर पाने का साहस नहीं हुआ किन्तु तानाजी ने चुनौती स्वीकार की और बोले, “मैं जीतकर लाऊंगा कोंडाना किला”कोंडाना का किला उदयभान राठौर द्वारा नियंत्रित किया जाता था, जो राजकुमार जय सिंह-1 द्वारा नियुक्त किया गया था। उदयभान के नेतृत्व में 5000 मुगल सैनिकों के साथ तानाजी का भयंकर युद्ध हुआ। तानाजी एक बहादुर शेर की तरह लड़े और इस किले को अन्ततः जीत लिया गया,लेकिन इस प्रक्रिया में, तानाजी गंभीर रूप से घायल हो गए थे और युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। तानाजी जी ने बड़ी वीरता का परिचय देते हुए कोंडाना किले को, उसके पास के क्षेत्र को मुगलो के कब्जे से स्वतंत्र कराया. इस युद्ध के समय जब उनकी ढाल तूट गई तो तानाजी जी ने अपने सिर के फेटे को अपने हाथ पर बांधा और तलवार के वार अपने हाथों पर लिये और एक हाथ से वे बिजली की तेजी से तलवार चलातें रहे।

मुगलों की अधीनता से कोंडाना किले को मुक्त कराने के बाद शिवाजी महाराज ने कोंडाना किले का नाम बदलकर अपने मित्र तानाजी मालुसरे की याद में “सिंहगढ़” नाम रखा साथ ही पुणे नगर के “वाकडेवाडी” का नाम “नरबीर तानाजी वाडी”कर दिया। तानाजी की वीरता को देखते हुए शिवाजी ने उनकी याद में महाराष्ट्र में उनकी याद में कई स्मारक स्थापित किए।

तानाजी की वीरता व दृढ़ निश्चय का उल्लेख मध्यकाल युग के कवि तुलसीदास ने “पोवाडा” नामक कविता की रचना में किया।

देश के महान समाजसेवी और क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर ने भी तानाजी के जीवन पर “बाजीप्रभु” नामक गीत की रचना की थी। जिस पर ब्रिटिश सरकार ने रोक लगा दी लेकिन 24 मई 1946 को प्रतिबंध हटा दिया गया।