*विवाह और सप्तपदी का प्रामाणिक स्वरूप*

*आध्यात्मिक गुरु श्री श्री प्रभुस्वरूप जोशीजी के दिव्य व्याख्यान*....
(महाभारत का रहस्यार्थ....)

 प्राचीन भारतीय संस्कृति में विवाह को मनुष्य के जीवन में सम्पन्न होने वाले सर्वाधिक महत्वपूर्ण यज्ञ के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है... चार आश्रमों में से दूसरा... गृहस्थ आश्रम अन्य सभी आश्रमों का आधार है....इस आश्रम में प्रवेश से पूर्व वर और वधू को प्राकृतिक नियमों को अपने जीवन का अनिवार्य हिस्सा बनाने की आवश्यकता है....
अन्यथा जीवन कष्टपूर्ण हो जाता है...
महाभारत में कौरवों के जनक धृतराष्ट्र और गांधारी का विवाह हुआ... 
धृतराष्ट जन्मांध थे...गांधारी का जब उनसे विवाह हुआ...उसने भी अपनी आंखों पर पट्टी बांध दी....
*यह वाक्य बहुत अद्भुत है*...
ब्रह्मांड की एक अकाट्य सच्चाई की अभिव्यक्ति है...
आंखों पर पट्टी बांधना ...एक मुहावरा है...जिसका अर्थ है...किसी अन्य का बिना सोचे समझे अनुशरण करना.....
ऐसा नहीं था कि ऐतिहासिक पात्र गांधारी ने अपनी आँखों पर कपड़ा बाँध दिया हो...बल्कि उसने बिना सोचे समझे धृतराष्ट्र  का अनुशरण करने का प्रण लिया...
*कुँवारी गांधारी शिव भक्त थी...उसके भीतर उचित... अनुचित का निर्णय लेने का विवेक था*...परन्तु धृतराष्ट्र से विवाह करके उसने अपनी आत्मा के शौर्य को ही विस्मृत कर दिया... उसने अपने उस पति का आँख बंदकर अनुशरण किया... जो मोह से आसक्त था... अपने छोटे भाई पांडु के सद्गुणों से द्वेष करता था... उसके शौर्य उसकी सामर्थ्य से ईर्ष्या करता था...उसने अपनी नेत्रहीनता रूपी जन्मजात कमजोरी को कभी अपनी ताकत में बदलने की जरूरत ही नहीं समझी...
*गांधारी चाहती तो अपनी विवेक शक्ति प्रचंड कर उसे प्रज्ञा चक्षु प्रदान कर सकती थी*...परन्तु उसने ऐसा नहीं किया...
*सोचिये...यदि गांधारी जन्म से अंधी होती तो क्या धृतराष्ट भी अपनी आंखों पर पट्टी बांध देते* ?
बिल्कुल बाँध देते...क्योंकि 
आकर्षण का यही नियम है...
जिसकी विवेक शून्यता(मूढ़ता) ज्यादा गहरी होगी... वह अपने जीवन साथी को अपनी आँखों (सोचने... समझने... विश्लेषण करने ...उपयुक्त निर्णय लेने की शक्ति)पर पट्टी बाँधने को विवश कर देगा...
इसका विपरीत भी इतना ही सत्य है...
यहाँ पर विवाह के वास्तविक मन्तव्य को अभिव्यक्त करने की आवश्यकता है...
विवाह के बाद पति पत्नी में से जिसके  अवचेतन मन का ब्लू प्रिंट ज्यादा शक्तिशाली होगा..वही परिणामी ब्लू प्रिंट सिद्ध होगा..
 विवाह वैदिक सभ्यता में हमेशा से ही एक धार्मिक कार्य माना जाता रहा है...
*विवाह का अर्थ है...दो अलग अलग व्यक्ति...जिनकी सोच, संस्कार, मान्यताएं और धारणाएं..अलग अलग हैं*....
*उन्होंने मिलकर..ब्रह्मांडीय नियमों को ध्यान में रखकर ..एक नयी मान्यता... धारणा... सोच और संस्कार विकसित करने का निर्णय लिया है*... जो दोनों पक्षों के भौतिक और आध्यात्मिक विकास की पूर्ति कर सके... ..........
*विवाह न सिर्फ भौतिक विकास  बल्कि आत्मिक विकास की एक बहुत बड़ी जरूरत है*...
बिना विवाह के पूर्णता हासिल हो ही नहीं सकती...हालांकि यह नियम अतिमानवों अर्थात् जो आध्यात्मिक और भौतिक रूप से पूर्ण विकसित हों,  पर लागू नहीं होता...
असफल वैवाहिक जीवन का अर्थ है.... विवाह के उपरांत भी पति पत्नी के पुराने ब्लू प्रिंट में कोई ज्यादा परिवर्तन... सुधार नहीं आया...
..
*महर्षि वेद व्यास जी ने गांधारी की आंखों पर पट्टी बंधी ..लिखकर...यह सिद्ध किया है...कि... महाभारतकालीन सभ्यता...आकर्षण के नियम से पूर्ण रूप से परिचित थी*...
आज भी अधिकांश पति पत्नी एक दूसरे के हिसाब से चलते हैं... एक दूसरे का अनुशरण करते हैं....
क्योंकि उन्हें यही सिखाया जाता है ....
जिसे यह तथ्य सिखाया न भी गया हो...उसके पास ऐसा न करने के लिए कोई विकल्प भी नहीं होता..
 *यही कारण है...ज्यादातर विवाह असफल हो जाते हैं*...
*क्योंकि जो गांधारी बनते हैं...वह स्वयम को खो देते हैं*..


और जिसने स्वयम को ही खो दिया हो..
 वह ईश्वर को अर्थात् श्रेष्ठ को.. कैसे प्राप्त कर सकता है??
 *पति पत्नी में से कोई एक नेतृत्व करता है*...और दूसरा उसका  अनुशरण...
*यह जरूरी नहीं है कि पति... जिसके पीछे पत्नी चल रही है...वह सही मार्ग पर चल रहा हो...या पत्नी... जिसके पीछे पति चल रहा है...वह सही मार्ग पर चल रही हो*....
ऐसी स्थिति में दोनों का सही गंतव्य तक पहुँचना असंभव है...
होना यह चाहिए कि....
*विवाह से पूर्व दोनों युवक और युवती का किसी योग्य प्रशिक्षक द्वारा मनोवैज्ञानिक विश्लेषण हो*...
*दोनों ही अपने पुराने ब्लू प्रिंट को छोड़ें...और...नया ब्लू प्रिंट बनाएं*...
फिर उस नए ब्लू प्रिंट को दोनों के अवचेतन  मन में स्थापित किया जाय...ताकि वो सुखद वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें....
*प्राचीन काल में इस प्रक्रिया को सप्तपदी कहा जाता था*...
*सात फेरों के समय...दोनों के सातों चक्रों की ऊर्जा को..यथासम्भव सन्तुलित किया जाता था...ताकि वैवाहिक जोड़े की सफलता सुनिश्चित हो सके*....
फिर गौ दान के वक़्त...अन्य लोग इस नए ब्लू प्रिंट को अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा ( आशीर्वाद) से अपना समर्थन देते थे...
जो पति पत्नी दोनों साधना कर रहे होते हैं... उनका ब्लूप्रिंट फिर भी मैच होने की संभावना बन सकती है...
लेकिन जहां सिर्फ पति/पत्नी ही साधना कर रहा हो... वहाँ साधना के ठोस नतीजे आने में विलंब हो सकता है...
अभिप्राय यह है कि यदि आपका जीवन साथी नया ब्लूप्रिंट बनाने के लिए तैयार न हो तो भी दुखी न हों...आपका नया ब्लूप्रिंट इतना शक्तिशाली होना चाहिए जिसे आपका जीवन साथी अपनाने के लिए विवश हो जाय...
*विवाह के समय ...वर और वधू के अवचेतन मन के सभी 7 हिस्सों में प्रकृति के मुख्य 7 नियम स्थापित करने की मनोवैज्ञानिक पद्धति को ही सप्तपदी या 7 फेरे कहते हैं*...
वर्तमान समय में जहां वैवाहिक जीवन अपना स्थायित्व खोता जा रहा है....या फिर एक दूसरे के शोषण का जरिया बन रहा है...
*ऐसे में बहुत जरूरी है... विवाह में प्राचीन वैदिक पद्धति को लागू किया जाय*...
विवाह के वक्त जन्मकुंडली का मिलान एक अलग तथ्य है... और नया ब्लूप्रिंट बनाना  बिल्कुल अलग  बात है.... यदि नया ब्लूप्रिंट न बनाना हो तो जन्मकुंडली मिलान का कोई औचित्य नहीं है...
*जन्म कुंडलियों का अध्ययन तो उस प्रशिक्षक के लिए सहयोगी हो सकता है...जिसने वर वधू का नया ब्लूप्रिंट तैयार करना हो*...


जन्म कुंडली ...व्यक्ति के पूर्व जन्मों के कर्मों का ब्यौरा है... जिससे सिर्फ यह अनुमान लगाया जा सकता है कि परिवर्तन की जरूरत जीवन के किस क्षेत्र में है...
*उदाहरण के लिए...यदि व्यक्ति मांगलिक है...तो यह बात सिर्फ इतना कह रही है...कि उस व्यक्ति ने पूर्व जन्मों में वैवाहिक जीवन में अत्यंत दुख भोगा है*...
और यदि उसने इस जन्म में पुरानी पीड़ाओं को हटाकर वैवाहिक जीवन के बारे में उचित धारणाएं नहीं बनायी तो  पूर्व जन्मों की भाँति इस जन्म में भी वही घटित होगा...अभिप्राय यह है कि प्रारब्ध का अस्तित्व तब तक रहता है... जबतक प्रारब्ध को बदलने की इच्छा शक्ति और मार्गदर्शन प्राप्त न हो.... लेकिन होता क्या है...एक मांगलिक की शादी...दूसरे मांगलिक के साथ कर दी जाती है...
*अर्थात् एक धृतराष्ट्र की शादी गांधारी से  हो जाती है*...
*गांधारी धृतराष्ट्र के मन को आँखें दे न सकी*...अर्थात् विवेक ज्ञान नहीं दे सकी....
 नतीजा यह  हुआ कि... गांधारी का मन भी अपनी आंखें खो देता है...
ठीक उसी तरह...जैसे वर्तमान समय में वायरस से संक्रमित कौन होगा??
 जो दूसरों में आरोग्यता को प्रवाहित नहीं कर सकें....
 प्रकृति का स्पष्ट नियम है...  या तो आरोग्यता फैलाओ...अन्यथा...बीमार हो जाओ...
देना तो पड़ेगा ही .... यह प्रकृति का नियम है... नहीं दोगे... तो लेना पड़ेगा...तीसरा विकल्प है ही नहीं...
 विद्योत्तमा के सामने भी यही स्थिति थी...
या तो कालिदास बन जाओ या फिर कालिदास को विद्योत्तमा बना दो...
अर्थात् या तो पति की तरह मूर्ख बन जाओ...या फिर पति को स्वयं की तरह विद्वान बना दो....
*गांधारी धृतराष्ट्र की तरह हो गयी...और विद्योत्तमा ने कालिदास को अपने जैसा बना दिया*...
चुनाव अपना अपना...भाग्य अपना अपना...
लेकिन चुनाव...
चुनाव दरअसल दृष्टि है...
चुनाव सामर्थ्य पर निर्भर करता है..
चुनाव शक्ति के हिसाब से होता है
चुनाव शौर्य पर निर्भर करता है..