ईश्वर हैं
क्या फर्क पड़ता है ,
ईश्वर नहीं है
क्या फर्क पड़ता है ।
जब तुम दूर हो
जब तुम दूर हो रहे हो
गाँव से गली से
समाज से देश से
रिश्तों से खून से
जब वास्तव मेँ
अकेले निहायत अकेले हो
कोई साथ हो ले तो
चाहे ईश्वर ही क्यों न हो
चाहोगे?
ईश्वर हैं
क्या फर्क पड़ता है ,
ईश्वर नहीं है
क्या फर्क पड़ता है ।
जब तुम दूर हो
जब तुम दूर हो रहे हो
गाँव से गली से
समाज से देश से
रिश्तों से खून से
जब वास्तव मेँ
अकेले निहायत अकेले हो
कोई साथ हो ले तो
चाहे ईश्वर ही क्यों न हो
चाहोगे?